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परि॒ सोम॑ ऋ॒तं बृ॒हदा॒शुः प॒वित्रे॑ अर्षति । वि॒घ्नन्रक्षां॑सि देव॒युः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari soma ṛtam bṛhad āśuḥ pavitre arṣati | vighnan rakṣāṁsi devayuḥ ||

पद पाठ

परि॑ । सोमः॑ । ऋ॒तम् । बृ॒हत् । आ॒शुः । प॒वित्रे॑ । अ॒र्ष॒ति॒ । वि॒ऽघ्नन् । रक्षां॑सि । दे॒व॒ऽयुः ॥ ९.५६.१

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:56» मन्त्र:1 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:13» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

अब परमात्मा सदाचारियों को ही ज्ञानगोचर हो सकता है, यह कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! आप (ऋतं बृहत् आशुः) सत्यस्वरूप और सबसे महान् तथा शीघ्रगतिवाले हैं (देवयुः) सत्कर्मियों को चाहते हुए और (रक्षांसि विघ्नन्) दुष्कर्मियों को नाश करते हुए (पवित्रे अर्षति) पवित्र अन्तःकरणों में निवास करते हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा कर्मों का यथायोग्य फलप्रदाता है; इसलिए उसके उपासक को चाहिए कि वह सत्कर्म करता हुआ उसका उपासक बने, ताकि उसे परमात्मा के दण्ड का फल न भोगना पड़े। तात्पर्य यह है कि प्रार्थना उपासना से केवल हृदय की शुद्धि होती है, पापों की क्षमा नहीं होती ॥१॥
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आर्यमुनि

सम्प्रति सदाचारिभिरेव परमात्मा लभ्य इति वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे जगदीश्वर ! भवान् (ऋतं बृहत् आशुः) सत्यस्वरूपवानस्ति। तथा सर्वस्मादपि महान् अथ च शीघ्रगतिशीलोऽस्ति (देवयुः) सत्कर्मिणो वाञ्छन् तथा (रक्षांसि विघ्नन्) दुष्टान् घातयन् (पवित्रे अर्षति) पवित्रान्तःकरणे निवसति ॥१॥